प्यार की भाषाएँ – कुँवर नारायण

Download kavya Dhara Hindi application from this link http://bit.ly/2RosSp4 मैंने कई भाषाओँ में प्यार किया हैपहला प्यारममत्व की तुतलाती मातृभाषा में…कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में : दूसरा प्यारबहन की कोमल छाया मेंएक सेनेटोरियम की उदासी तक : फिर नासमझी की भाषा मेंएक लौ को पकड़ने की कोशिश मेंजला बैठा था अपनी अँगुलियाँ : … Read more

राजेश रेड्डी

इक ज़हर के दरिया को दिन-रात बरतता हूँहर साँस को मैं, बनकर सुक़रात, बरतता हूँ खुलते भी भला कैसे आँसू मेरे औरों परहँस-हँस के जो मैं अपने हालात बरतता हूँ कंजूस कोई जैसे गिनता रहे सिक्कों कोऐसे ही मैं यादों के लम्हात बरतता हूँ मिलते रहे दुनिया से जो ज़ख्म मेरे दिल कोउनको भी समझकर … Read more

ओशो

प्रेम तो सीढ़ी का नाम है…! फिर इसके आगेऔर सीढ़ियां हैं।मगर वे सबप्रेम से हीउत्पन्न होती है।तुम से मैंने कहा किप्रेम के ये चार रूप है— स्नेह;अपने से छोटे के प्रति हो,बच्चे के प्रति। प्रेम;अपने से समान के प्रति हो,मित्र के प्रति;पति—पत्नी के प्रति। श्रद्धा;अपने से बड़े के प्रति हो,मां के प्रति,पिता के प्रति,गुरु के … Read more

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं

Download kavya Dhara Hindi application for more poetry अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभी लब खोले हैं पहले “फ़िराक़” को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं दिन में हम को देखने वालो अपने-अपने हैं औक़ात जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं फ़ितरत मेरी … Read more

शाम है बहुत उदास

एकाकीपन का एकांतकितना निष्प्रभ, कितना क्लांत । थकी-थकी सी मेरी साँसेंपवन घुटन से भरा अशान्त,ऐसा लगता अवरोधों सेयह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त । अंधकार में खोया-खोयाएकाकीपन का एकांतमेरे आगे जो कुछ भी वहकितना निष्प्रभ, कितना क्लांत । उतर रहा तम का अम्बारमेरे मन में व्यथा अपार । आदि-अन्त की सीमाओं मेंकाल अवधि का यह विस्तारक्या कारण? … Read more

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