कुछ सुन लें – भगवतीचरण वर्मा

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें । जीवन-सरिता की लहर-लहर,मिटने को बनती यहाँ प्रियेसंयोग क्षणिक, फिर क्या जानेहम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये । पल-भर तो साथ-साथ बह लें,कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें । आओ कुछ ले लें औ’ दे लें । हम हैं अजान पथ के राही,चलना जीवन का सार प्रियेपर … Read more

बस इतना अब चलना होगा

बस इतना अब चलना होगाफिर अपनी-अपनी राह हमें । कल ले आई थी खींच, आजले चली खींचकर चाह हमेंतुम जान न पाईं मुझे, औरतुम मेरे लिए पहेली थीं;पर इसका दुख क्या? मिल न सकीप्रिय जब अपनी ही थाह हमें । तुम मुझे भिखारी समझें थीं,मैंने समझा अधिकार मुझेतुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,था बना वही तो प्यार … Read more

शाम है बहुत उदास

एकाकीपन का एकांतकितना निष्प्रभ, कितना क्लांत । थकी-थकी सी मेरी साँसेंपवन घुटन से भरा अशान्त,ऐसा लगता अवरोधों सेयह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त । अंधकार में खोया-खोयाएकाकीपन का एकांतमेरे आगे जो कुछ भी वहकितना निष्प्रभ, कितना क्लांत । उतर रहा तम का अम्बारमेरे मन में व्यथा अपार । आदि-अन्त की सीमाओं मेंकाल अवधि का यह विस्तारक्या कारण? … Read more

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ – भगवतीचरण वर्मा

Download kavya Dhara Hindi Application for more poetry https://play.google.com/store/apps/details?id=com.sufalamtech.hindipoem मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँअपने प्रकाश की रेखातम के तट पर अंकित हैनिःसीम नियति का लेखा देने वाले को अब तकमैं देख नहीं पाया हूँ,पर पल भर सुख भी देखाफिर पल भर दुख भी देखा । किस का आलोक गगन सेरवि शशि उडुगन बिखराते?किस अंधकार … Read more

तुम मृगनयनी

Download kavya Dhara Hindi application Down the application from this link https://play.google.com/store/apps/developer?id=Sufalam+Technologies+Private+Ltd. तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनीतुम छवि की परिणीता-सी,अपनी बेसुध मादकता मेंभूली-सी, भयभीता सी । तुम उल्लास भरी आई होतुम आई उच्छ्‌वास भरी,तुम क्या जानो मेरे उर मेंकितने युग की प्यास भरी । शत-शत मधु के शत-शत सपनोंकी पुलकित परछाईं-सी,मलय-विचुम्बित तुम ऊषा कीअनुरंजित अरुणाई-सी ; … Read more

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