बशीर बद्र

वो चांदनी का बदन ख़ुशबूओं का साया है – बशीर बद्र वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया हैबहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है  उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने सेतुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है  महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों सेख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है  उसे किसी … Read more

घर भी आओ

कभी किसी दिन घर भी आओ – जय चक्रवर्ती आते-जाते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ  चाय पियेंगे,बैठेंगे कुछ देर मजे से बतियायेंगेकुछ अपनी,कुछ इधर-उधर की कह-सुन मन को बहलायेंगे बीच रास्ते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ  मिलना-जुलना, बात-बतकही हँसी-ठिठोली सपन हुए सब बाँट-चूँट कर खाना-पीना साझे दुख-सुख हवन … Read more

पिता

पिता – जय चक्रवर्ती घर को घर रखने मेहर विष पीते रहे पिता  आँखों की गोलक मेंसंचितपर्वत से सपने सपनों में सम्बन्धों की खिड़की खोले अपने रिश्तों की चादर जीवन-भरसीते रहे पिता अपनों के सायेपथ में अनचीन्हें कभी हुए कभी बिंधे छाती मेंचुपके अपने ही अंखुएकई दर्द-आदमक़दपल-पल जीते रहे पिता  फ़रमाइशें, जिदें, जरूरतेंकंधों पर लादेएक सृष्टि के लिए वक्ष पर –एक सृष्टि साधेसबको भरते … Read more

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे – ज़िया जालंधरी क्या सरोकार अब किसी से मुझेवास्ता था तो था तुझी से मुझे  बे-हिसी का भी अब नहीं एहसासक्या हुआ तेरी बे-रूख़ी से मुझे मौत की आरज़ू भी कर देखोक्या उम्मीदें थीं जिंदगी से मुझे फिर किसी पर न ए‘तिबार आए यूँ उतारो न अपने जी से मुझे … Read more

गीता पंडित

तुम मधुर एक कल्पना से – गीता पंडित तुम मधुर एक कल्पना से, संग मेरे चल रहेअब विरह के गीत गानेकोई पल ना आयेगामन के मधुबन में ओ मीते !प्रेम फिर से गायेगारच रहे हैं गीत सुर सरगम मेंपल ये ढल रहे खोल दो सब बंद द्वारेमीत अंतर में पधारेदीप अर्चन आरती बनमन स्वयं को आज वारेदेख … Read more

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