घर भी आओ

कभी किसी दिन घर भी आओ – जय चक्रवर्ती आते-जाते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ  चाय पियेंगे,बैठेंगे कुछ देर मजे से बतियायेंगेकुछ अपनी,कुछ इधर-उधर की कह-सुन मन को बहलायेंगे बीच रास्ते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ  मिलना-जुलना, बात-बतकही हँसी-ठिठोली सपन हुए सब बाँट-चूँट कर खाना-पीना साझे दुख-सुख हवन … Read more

पिता

पिता – जय चक्रवर्ती घर को घर रखने मेहर विष पीते रहे पिता  आँखों की गोलक मेंसंचितपर्वत से सपने सपनों में सम्बन्धों की खिड़की खोले अपने रिश्तों की चादर जीवन-भरसीते रहे पिता अपनों के सायेपथ में अनचीन्हें कभी हुए कभी बिंधे छाती मेंचुपके अपने ही अंखुएकई दर्द-आदमक़दपल-पल जीते रहे पिता  फ़रमाइशें, जिदें, जरूरतेंकंधों पर लादेएक सृष्टि के लिए वक्ष पर –एक सृष्टि साधेसबको भरते … Read more

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