क्यों इन तारों को उलझाते ?

Download Hindi Kavya Dhara application आज क्यों तेरी वीणा मौन ? शिथिल शिथिल तन थकित हुए कर, स्पंदन भी भूला जाता उर, मधुर कसक सा आज हृदय में आन समाया कौन? आज क्यों तेरी वीणा मौन ? झुकती आती पलकें निश्चल, चित्रित निद्रित से तारक चल; सोता पारावार दृगों में भर भर लाया कौन ? … Read more

व्यंग्य – शैल चतुर्वेदी

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ाऔर कहा, “एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?”तो बोला, “पहले खाना खिलाओ।”खाना खिलाया तो बोला, “पान खिलाओ।”पान खिलाया तो बोला, “खाना बहुत बढ़िया थाउसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैंहमें व्यंग्य मत सुनाओजो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहाऔर हमें बेरोज़गारी … Read more

बाद की उदासी – कुँवर नारायण

कभी-कभी लगताबेहद थक चुका है आकाशअपनी बेहदी सेवह सीमित होना चाहता हैएक छोटी-सी गृहस्ती भर जगह में,वह शामिल होना चाहता है एक पारिवारिक दिनचर्या में,वह प्रेमी होना चाहता है एक स्त्री का,वह पिता होना चाहता है एक पुत्र का,वह होना चाहता है किसी के आँगन की धूप वह अविचल मौन से विचलित होध्वनित और प्रतिध्वनित … Read more

बस इतना अब चलना होगा

बस इतना अब चलना होगाफिर अपनी-अपनी राह हमें । कल ले आई थी खींच, आजले चली खींचकर चाह हमेंतुम जान न पाईं मुझे, औरतुम मेरे लिए पहेली थीं;पर इसका दुख क्या? मिल न सकीप्रिय जब अपनी ही थाह हमें । तुम मुझे भिखारी समझें थीं,मैंने समझा अधिकार मुझेतुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,था बना वही तो प्यार … Read more

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