Poetry
घर भी आओ
कभी किसी दिन घर भी आओ – जय चक्रवर्ती आते-जाते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ चाय पियेंगे,बैठेंगे कुछ देर मजे से बतियायेंगेकुछ अपनी,कुछ इधर-उधर की कह-सुन मन को बहलायेंगे बीच रास्ते ही मिलते हो भाई! थोड़ा वक़्त निकालो कभी किसी दिन घर भी आओ मिलना-जुलना, बात-बतकही हँसी-ठिठोली सपन हुए सब बाँट-चूँट कर खाना-पीना साझे दुख-सुख हवन … Read more
पिता
पिता – जय चक्रवर्ती घर को घर रखने मेहर विष पीते रहे पिता आँखों की गोलक मेंसंचितपर्वत से सपने सपनों में सम्बन्धों की खिड़की खोले अपने रिश्तों की चादर जीवन-भरसीते रहे पिता अपनों के सायेपथ में अनचीन्हें कभी हुए कभी बिंधे छाती मेंचुपके अपने ही अंखुएकई दर्द-आदमक़दपल-पल जीते रहे पिता फ़रमाइशें, जिदें, जरूरतेंकंधों पर लादेएक सृष्टि के लिए वक्ष पर –एक सृष्टि साधेसबको भरते … Read more
ज़िया जालंधरी
क्या सरोकार अब किसी से मुझे – ज़िया जालंधरी क्या सरोकार अब किसी से मुझेवास्ता था तो था तुझी से मुझे बे-हिसी का भी अब नहीं एहसासक्या हुआ तेरी बे-रूख़ी से मुझे मौत की आरज़ू भी कर देखोक्या उम्मीदें थीं जिंदगी से मुझे फिर किसी पर न ए‘तिबार आए यूँ उतारो न अपने जी से मुझे … Read more
गीता पंडित
तुम मधुर एक कल्पना से – गीता पंडित तुम मधुर एक कल्पना से, संग मेरे चल रहेअब विरह के गीत गानेकोई पल ना आयेगामन के मधुबन में ओ मीते !प्रेम फिर से गायेगारच रहे हैं गीत सुर सरगम मेंपल ये ढल रहे खोल दो सब बंद द्वारेमीत अंतर में पधारेदीप अर्चन आरती बनमन स्वयं को आज वारेदेख … Read more