मधुशाला

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला; पहले भोग लगा लूँ तेरा, फिर प्रसाद जग पाएगा; सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला। ।१। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला; जीवन की मधुता तो तेरे … Read more

आखिर पाया तो क्या पाया? – हरिशंकर परसाई

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा औरों के स्वर में स्वर भर कर अब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआ रीता तब मेरा अंक हुआ दाता से फिर याचक बनकर कण-कण पाया तो क्या पाया? जिस ओर उठी अंगुली जग की उस ओर मुड़ी … Read more

निदा फ़ाज़ली

बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान । अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।। मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार । दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ।। घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव । वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव ।। … Read more

पिता

रात के अंतिम पहर में नींद के बीहड़ से मीलों दूर घूमने निकलता हूँ जब अपने ही भीतर पाता हूँ तुम्हें किसी बंद दरवाज़े सा झांकने पर भीतर दीखता है तुम्हारा रक्त-रंजित ललाट तुम वह नहीं थे जो हो लौट आता हूँ सहम कर न चाहते हुए भी तुमने व्यवस्था को गहा लड़ते रहे सब … Read more

गुलज़ार

बस एक चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं! कहीं पे सांस रुकी है! नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!! कोई अनोखी नहीं, ऐसी ज़िन्दगी लेकिन! खूब न हो, मिली जो खूब मिली है! नहीं उदास नहीं, बस एक चुप सी लगी है!! सहर भी ये रात भी, दोपहर भी मिली लेकिन! … Read more

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