मधुकलश – हरिवंशराय ‘बच्चन’

मधुकलश – हरिवंशराय ‘बच्चन’ है आज भरा जीवन मुझमे, है आज भरी मेरी गागर! १ सर में जीवन है, इससे ही वह लहराता रहता प्रति पल, सरिता में जीवन, इससे ही वह गाती जाती है कल-कल निर्झर में जीवन, इससे ही वह झर-झर झरता रहता है, जीवन ही देता रहता है नाद को द्रुत गति, … Read more

उस पार न जाने क्या होगा! – हरिवंशराय बच्चन

फ़िराक़ गोरखपुरी

जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बुँदे पाती है, जीवन की झिलमिल-सी झाँकी नयनों के आगे आती है, स्वर-तालमयी वीणा बजती , मिलती है बस झंकार मुझे, मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है; ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएँगे; तब मानव की चेनतता का … Read more

इस पार-उस पार – हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये, मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का लहरा-लहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देतीं मन का, कल मुरझानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं, मग्न रहो, बुल बुल तरु की फुनगी पर से संदेह सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा … Read more

क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ~ हरिवंश राय बच्चन

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,पलक संपुटों में मदिरा भर,तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’और न कुछ मैं कहने पाया –मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ … Read more

उस पार न जाने क्या होगा – हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,उस पार न जाने क्या होगा!यह चाँद उदित होकर नभ मेंकुछ ताप मिटाता जीवन का,लहरा लहरा यह शाखाएँकुछ शोक भुला देती मन का,कल मुर्झानेवाली कलियाँहँसकर कहती हैं मगन रहो,बुलबुल तरु की फुनगी पर सेसंदेश सुनाती यौवन का,तुम देकर मदिरा के प्यालेमेरा मन बहला देती हो,उस पार मुझे बहलाने काउपचार … Read more

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