क्या किया आज तक क्या पाया?
मैं सोच रहा, सिर पर अपारदिन, मास, वर्ष का धरे भारपल, प्रतिपल का अंबार लगाआखिर पाया तो क्या पाया? जब तान छिड़ी, मैं बोल उठाजब थाप पड़ी, पग डोल उठाऔरों के स्वर में स्वर भर करअब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआरीता तब मेरा अंक हुआदाता से फिर याचक बनकरकण-कण … Read more