बाद की उदासी – कुँवर नारायण

कभी-कभी लगताबेहद थक चुका है आकाशअपनी बेहदी सेवह सीमित होना चाहता हैएक छोटी-सी गृहस्ती भर जगह में,वह शामिल होना चाहता है एक पारिवारिक दिनचर्या में,वह प्रेमी होना चाहता है एक स्त्री का,वह पिता होना चाहता है एक पुत्र का,वह होना चाहता है किसी के आँगन की धूप वह अविचल मौन से विचलित होध्वनित और प्रतिध्वनित … Read more

बस इतना अब चलना होगा

बस इतना अब चलना होगाफिर अपनी-अपनी राह हमें । कल ले आई थी खींच, आजले चली खींचकर चाह हमेंतुम जान न पाईं मुझे, औरतुम मेरे लिए पहेली थीं;पर इसका दुख क्या? मिल न सकीप्रिय जब अपनी ही थाह हमें । तुम मुझे भिखारी समझें थीं,मैंने समझा अधिकार मुझेतुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,था बना वही तो प्यार … Read more

दर्द बढ़ा देता है

ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है जो भी मिलता है मिरा दर्द बढ़ा देता है किसी हमदम का सर-ए-शाम ख़याल आ जाना नींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता है प्यास इतनी है मेरी रूह की गहराई में अश्क गिरता है तो दामन को जला देता है किस ने माज़ी के दरीचों से … Read more

बाँझ – मंटो

मेरी और उस की मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलो बंदर पर हुई शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरणें समुंद्र की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी। जो साहिल के बंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की तहें मालूम होती थीं। मैं गेट आफ़ इंडिया के … Read more

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