बाँझ – मंटो

मेरी और उस की मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलो बंदर पर हुई शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरणें समुंद्र की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी। जो साहिल के बंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की तहें मालूम होती थीं। मैं गेट आफ़ इंडिया के … Read more

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