तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है … Read more

पहली बूँदें

पहली बूँदें बारिश की जो आईं मन कचनार हुआभींंगा मन का कोना-कोनामहक उठा गुलज़ार हुआ खाली-खाली मटके थेपनघट पर सन्नाटा थासूखे-प्यासे कंंठों नेतड़प-तड़प दिन काटा थाइंतजार की रेखा टूटीजलमय जग-संसार हुआ पोखर-ताल उदास हुए थेलुटे पथिक के जैसेपानी का धन खोकर किसकोदेते क्या वे कैसे? आसमान की दौलत पागड्ढा भी साहुकार हुआ  शोलों के शरबत को … Read more

मेरे जाने के बाद

जब मैं पंचमहाभूतों के रूप में नहीं रहूँगातब सम्भव हैकि तुम्हारे आसपास मैं एक अदृश्य उपस्थिति के रूप में रहूँ एक जर्जर फ्रेम के बीच झाँकता होगा मेरा प्रसन्नमुख चेहराहालाँकि सूख कर झरने लगे बासी फूलों की माला के बीच मैंदसों दिशाओं में चल रहे खण्ड खण्ड पाखण्ड पर्वों’ कामूक साक्षी रहूँगा यही होगा कि … Read more

क्यों इन तारों को उलझाते ?

Download Hindi Kavya Dhara application आज क्यों तेरी वीणा मौन ? शिथिल शिथिल तन थकित हुए कर, स्पंदन भी भूला जाता उर, मधुर कसक सा आज हृदय में आन समाया कौन? आज क्यों तेरी वीणा मौन ? झुकती आती पलकें निश्चल, चित्रित निद्रित से तारक चल; सोता पारावार दृगों में भर भर लाया कौन ? … Read more

व्यंग्य – शैल चतुर्वेदी

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ाऔर कहा, “एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?”तो बोला, “पहले खाना खिलाओ।”खाना खिलाया तो बोला, “पान खिलाओ।”पान खिलाया तो बोला, “खाना बहुत बढ़िया थाउसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैंहमें व्यंग्य मत सुनाओजो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहाऔर हमें बेरोज़गारी … Read more

error: Content is protected !!