न सोच कोई, न शिकायत

न सोच कोई, न शिकायत,न विवाद कोई, न नींद।न सूर्य की इच्‍छा, न चंद्रमा की,न समुद्र की, न जहाज की। महसूस नहीं होती गरमीइन दीवारों के भीतर की,दिखती नहीं हरियालीबाहर के उद्यानों की।इंतजार नहीं रहता अबउन उपहारों काजिन्‍हें पाने की पहलेरहती थी बहुत इच्‍छा। न सुबह की खामोशी भाती हैन शाम को ट्रामों की सुरीली … Read more

सद्यःस्नाता

पानीछूता है उसेउसकी त्वचा के उजास कोउसके अंगों की प्रभा को – पानीढलकता है उसकीउपत्यकाओं शिखरों में से – पानीउसे घेरता हैचूमता है पानी सकुचातालजातागरमाता हैपानी बावरा हो जाता है पानी के मन मेंउसके तन केअनेक संस्मरण हैं। अशोक वाजपेयी 

रघुवीर सहाय

चौड़ी सड़क गली पतली थीदिन का समय घनी बदली थीरामदास उस दिन उदास थाअंत समय आ गया पास थाउसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी धीरे धीरे चला अकेलेसोचा साथ किसी को ले लेफिर रह गया, सड़क पर सब थेसभी मौन थे सभी निहत्थेसभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी खड़ा … Read more

कमी सी है – जावेद अख़्तर

हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है हँसती आँखों में भी नमी-सी है दिन भी चुप चाप सर झुकाये थारात की नब्ज़ भी थमी-सी है किसको समझायें किसकी बात नहीं ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है  ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई गर्द इन पलकों पे जमी-सी है  कह गए हम ये किससे दिल की बातशहर में एक … Read more

उल्लू बनाती हो? – शैल चतुर्वेदी

एक दिन मामला यों बिगड़ाकि हमारी ही घरवाली सेहो गया हमारा झगड़ास्वभाव से मैं नर्म हूँइसका अर्थ ये नहींके बेशर्म हूँपत्ते की तरह काँप जाता हूँबोलते-बोलते हाँफ जाता हूँइसलिये कम बोलता हूँमजबूर हो जाऊँ तभी बोलता हूँहमने कहा-“पत्नी होतो पत्नी की तरह रहोकोई एहसान नहीं करतींजो बनाकर खिलाती होक्या ऐसे ही घर चलाती होशादी को … Read more

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