क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ~ हरिवंश राय बच्चन

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,पलक संपुटों में मदिरा भर,तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’और न कुछ मैं कहने पाया –मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ … Read more

कमरे में धूप ~ कुंवर नारायण

हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,दीवारें सुनती रहीं।धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठीकिरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही। सहसा किसी बात पर बिगड़ करहवा ने दरवाज़े को तड़ सेएक थप्पड़ जड़ दिया ! खिड़कियाँ गरज उठीं,अख़बार उठ कर खड़ा हो गया,किताबें मुँह बाये देखती रहीं,पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी,मेज़ के हाथ … Read more

ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी! ~ अमृता प्रीतम

ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!एक बार अचानक – तू आयावक़्त बिल्कुल हैरानमेरे कमरे में खड़ा रह गया।साँझ का सूरज अस्त होने को था,पर न हो सकाऔर डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया… फिर आदि के नियम ने एक दुहाई दी,और वक़्त ने उन खड़े क्षणों को देखाऔर खिड़की के रास्ते बाहर को भागा… वह बीते … Read more

हम हैं बहता पानी बाबा ~ अजय पाठक

अजय पाठक

मिलती जुलती बातें अपनी मसला एक रुहानी बाबातुम हो रमता जोगी – साधु हम हैं बहता पानी बाबा कठिन तपस्या है यह जीवन, राग-विराग तपोवन हैतुम साधक हो हम साधन हैं, दुनिया आनी-जानी बाबा तुमने दुनिया को ठुकराया, हमको दुनिया वालों नेहम दोनों की राह जुदा है, लेकिन एक कहानी बाबा धुनी रमाये तुम बैठे … Read more

जो बात है हद से बढ़ गयी है – फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जो बात है हद से बढ़ गयी हैवाएज़ के भी कितनी चढ़ गई है हम तो ये कहेंगे तेरी शोख़ीदबने से कुछ और बढ़ गई है हर शय ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुकबर्गे-गुले-तर से बढ़ गयी है जब-जब वो नज़र उठी मेरे सरलाखों इल्ज़ाम मढ़ गयी है तुझ पर जो पड़ी है इत्तफ़ाक़नहर आँख दुरूद पढ़ गयी है सुनते हैं कि … Read more

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