सपनों की उधेड़बुन – ओम पुरोहित ‘कागद’

एक-एक कर उधड़ गए वे सारे सपने जिन्हें बुना था अपने ही ख़यालों में मान कर अपने ! सपनों के लिए चाहिए थी रात हम ने देख डाले खुली आँख दिन में सपने किया नहीं हम ने इंतज़ार सपनों वाली रात का इसलिए हमारे सपनों का एक सिरा रह जाता था कभी रात के कभी … Read more

शेर

कई दिन से शरारत ही नहीं की मिरे अंदर का बच्चा लापता है अमित शर्मा तुझ पे जमी हैं सब की नज़रें तेरी नज़र में कौन रहेगा अनीस अब्र किस ख़ता की सज़ा मिली उस को किस लिए रोज़ घटता बढ़ता है इन्दिरा वर्मा ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले शैख़-साहब से जाँ तो … Read more

बशीर बद्र

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी … Read more

तुम लौट आना – आनंद गुप्ता

तुम लौट आना जैसे किसी स्त्री के गर्भ में लौटता है नया जीवन जैसे लौट आती है आवाजें चट्टानों से टकराकर हर बार जैसे हर पराजय के बाद फिर से लौट आती है उम्मीद। तुम उस तरह मत लौटना जैसे क्षणिक सुख बिखेर कर वापस लौट आती है लम्बी उदासी। तुम लौटना जैसे गहरे जख्म … Read more

हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें – कुमार विश्वास

हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें उस पल मीठी-सी धुन घर के आँगन में सुन रोये मन-चैसर … Read more

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