गाढे अंधेरे में – अशोक वाजपेयी
इस गाढे अंधेरे में यों तो हाथ को हाथ नहीं सूझता लेकिन साफ़-साफ़ नज़र आता है : हत्यारों का बढता हुआ हुजूम, उनकी ख़ूंख़्वार आंखें, उसके तेज़ धारदार हथियार, उनकी भड़कीली पोशाकें मारने-नष्ट करने का उनका चमकीला उत्साह, उनके सधे-सोचे-समझे क़दम। हमारे पास अंधेरे को भेदने की कोई हिकमत नहीं है और न हमारी आंखों … Read more