गाढे अंधेरे में – अशोक वाजपेयी

इस गाढे अंधेरे में यों तो हाथ को हाथ नहीं सूझता लेकिन साफ़-साफ़ नज़र आता है : हत्यारों का बढता हुआ हुजूम, उनकी ख़ूंख़्वार आंखें, उसके तेज़ धारदार हथियार, उनकी भड़कीली पोशाकें मारने-नष्ट करने का उनका चमकीला उत्साह, उनके सधे-सोचे-समझे क़दम। हमारे पास अंधेरे को भेदने की कोई हिकमत नहीं है और न हमारी आंखों … Read more

प्रियतम – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

एक दिन विष्‍णुजी के पास गए नारद जी, पूछा, “मृत्‍युलोक में कौन है पुण्‍यश्‍यलोक भक्‍त तुम्‍हारा प्रधान?” विष्‍णु जी ने कहा, “एक सज्‍जन किसान है प्राणों से भी प्रियतम।” “उसकी परीक्षा लूँगा”, हँसे विष्‍णु सुनकर यह, कहा कि, “ले सकते हो।” नारद जी चल दिए पहुँचे भक्‍त के यहॉं देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर … Read more

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है? – हरिवंशराय बच्चन

कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था। स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना … Read more

रामधारी सिंह दिनकर

मैं चरणॊं से लिपट रहा था, सिर से मुझे लगाया क्यों? पूजा का साहित्य पुजारी पर इस भाँति चढ़ाया क्यों? गंधहीन बन-कुसुम-स्तुति में अलि का आज गान कैसा? मन्दिर-पथ पर बिछी धूलि की पूजा का विधान कैसा? कहूँ, या कि रो दूँ कहते, मैं कैसे समय बिताता हूँ; बाँध रही मस्ती को अपना बंधन दुदृढ़ … Read more

फैज अहमद फैज

वो लोग बहुत खुशकिस्‍मत थे जो इश्‍क को काम समझते थे या काम से आशिकी रखते थे हम जीते जी नाकाम रहे ना इश्‍क किया ना काम किया काम इश्‍क में आड़े आता रहा और इश्‍क से काम उलझता रहा फिर आखिर तंग आकर हमने दोनों को अधूरा छोड़ दिया – फैज अहमद फैज

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