संध्या सुन्दरी – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
दिवसावसान का समय-मेघमय आसमान से उतर रही हैवह संध्या-सुन्दरी, परी सी,धीरे, धीरे, धीरेतिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास-विलास।हँसता है तो केवल तारा एक-गुँथा हुआ उन घुँघराले काले-काले बालों से,हृदय राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।अलसता की-सी लता,किंतु कोमलता की वह कली,सखी-नीरवता के … Read more