आकाश के तारे न देख

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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।

अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
यह हकीकत देख लेकिन खौफ के मारे न देख।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।

ये धुंधलका है नजर का तू महज मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।

राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख।

दुष्यंत कुमार

जन्म : 1 सितंबर 1933, राजपुर-नवादा, बिजनौर (उत्तर प्रदेश)

भाषा : हिंदी

विधाएँ : नाटक ,कहानी,उपन्यास ,गजल, आलोचना, अनुवाद

काव्य संग्रह : सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुए वन का वसन्त।

काव्य नाटक : एक कण्ठ विषपायी

उपन्यास : छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी

कहानी संग्रह : मन के कोण

नाटक : और मसीहा मर गया

गजल संग्रह : साये में धूप

निधन : 30 दिसंबर 1975

राहत ने जीवन और जगत के विभिन्न पहलुओं पर जो ग़ज़लें कही हैं, वो हिन्दी-उर्दू की शायरी के लिए एक नया दरवाज़ा खोलती है. नए रदीफ़, नै बहार, नए मजमून, नया शिल्प उनकी ग़ज़लों में जादू की तरह बिखरा है जो पढ़ने व् सुनने वाले सभी के दिलों पर च जाता है. – गोपालदास नीरज.

Ghazals

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