क्या क्या ज़ुल्म न ढाया लोगों ने
हम को दिवाना जान के क्या क्या ज़ुल्म न ढाया लोगों ने दीन छुड़ाया धर्म छुड़ाया देस छुड़ाया लोगों ने तेरी गली में आ निकले थे दोश हमारा इतना था पत्थर मारे तोहमत बाँधी ऐब लगाया लोगों ने तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक़ बे-घर लोग बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया … Read more