आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए, रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी, आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । मैं तपोमय ज्योती की, … Read more

लो दिन बीता लो रात गयी – हरिवंशराय बच्चन

सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा,डूबा, संध्या आई, छाई,सौ संध्या सी वह संध्या थी,क्यों उठते-उठते सोचा थादिन में होगी कुछ बात नईलो दिन बीता, लो रात गई धीमे-धीमे तारे निकले,धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,सौ रजनी सी वह रजनी थी,क्यों संध्या को यह सोचा था,निशि में होगी कुछ बात नई,लो दिन बीता, लो रात गई चिडियाँ चहकी, कलियाँ … Read more

एहसास – हरिवंशराय बच्चन

ग़म ग़लत करने के जितने भी साधन मुझे मालूम थे,और मेरी पहुँच में थे,और सबको एक-एक जमा करके मैंने आजमा लिया,और पाया कि ग़म ग़लत करने का सबसे बड़ा साधन है नारी और दूसरे दर्जे पर आती है कविता,और इन दोनों के सहारे मैंने ज़िन्दगी क़रीब-क़रीब काट दी.और अब कविता से मैंने किनाराकशी कर ली है और नारी भी छूट ही गई है–देखिए,यह … Read more

क्या है मेरी बारी में – हरिवंशराय बच्चन

क्या है मेरी बारी में। जिसे सींचना था मधुजल सेसींचा खारे पानी से,नहीं उपजता कुछ भी ऐसीविधि से जीवन-क्यारी में।क्या है मेरी बारी में। आंसू-जल से सींच-सींचकरबेलि विवश हो बोता हूं,स्रष्टा का क्या अर्थ छिपा हैमेरी इस लाचारी में।क्या है मेरी बारी में। टूट पडे मधुऋतु मधुवन मेंकल ही तो क्या मेरा है,जीवन बीत गया … Read more

एक उंगली से लिखा था ‘प्यार’ तुमने।

Download mobile application रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था ‘प्यार’ तुमने… फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी, तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी, मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा, रात … Read more

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