क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ~ हरिवंश राय बच्चन

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,पलक संपुटों में मदिरा भर,तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’और न कुछ मैं कहने पाया –मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ … Read more

उस पार न जाने क्या होगा – हरिवंशराय बच्चन

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,उस पार न जाने क्या होगा!यह चाँद उदित होकर नभ मेंकुछ ताप मिटाता जीवन का,लहरा लहरा यह शाखाएँकुछ शोक भुला देती मन का,कल मुर्झानेवाली कलियाँहँसकर कहती हैं मगन रहो,बुलबुल तरु की फुनगी पर सेसंदेश सुनाती यौवन का,तुम देकर मदिरा के प्यालेमेरा मन बहला देती हो,उस पार मुझे बहलाने काउपचार … Read more

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए, रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी, आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । मैं तपोमय ज्योती की, … Read more

लो दिन बीता लो रात गयी – हरिवंशराय बच्चन

सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा,डूबा, संध्या आई, छाई,सौ संध्या सी वह संध्या थी,क्यों उठते-उठते सोचा थादिन में होगी कुछ बात नईलो दिन बीता, लो रात गई धीमे-धीमे तारे निकले,धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,सौ रजनी सी वह रजनी थी,क्यों संध्या को यह सोचा था,निशि में होगी कुछ बात नई,लो दिन बीता, लो रात गई चिडियाँ चहकी, कलियाँ … Read more

एहसास – हरिवंशराय बच्चन

ग़म ग़लत करने के जितने भी साधन मुझे मालूम थे,और मेरी पहुँच में थे,और सबको एक-एक जमा करके मैंने आजमा लिया,और पाया कि ग़म ग़लत करने का सबसे बड़ा साधन है नारी और दूसरे दर्जे पर आती है कविता,और इन दोनों के सहारे मैंने ज़िन्दगी क़रीब-क़रीब काट दी.और अब कविता से मैंने किनाराकशी कर ली है और नारी भी छूट ही गई है–देखिए,यह … Read more

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