जो बात है हद से बढ़ गयी है – फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जो बात है हद से बढ़ गयी हैवाएज़ के भी कितनी चढ़ गई है हम तो ये कहेंगे तेरी शोख़ीदबने से कुछ और बढ़ गई है हर शय ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुकबर्गे-गुले-तर से बढ़ गयी है जब-जब वो नज़र उठी मेरे सरलाखों इल्ज़ाम मढ़ गयी है तुझ पर जो पड़ी है इत्तफ़ाक़नहर आँख दुरूद पढ़ गयी है सुनते हैं कि … Read more

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं

Download kavya Dhara Hindi application for more poetry अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभी लब खोले हैं पहले “फ़िराक़” को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं दिन में हम को देखने वालो अपने-अपने हैं औक़ात जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं फ़ितरत मेरी … Read more

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