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गाँव में होता है नाटक
फिर चर्चा, सवाल-जवाब।
लोग कहते सुनाई देते हैं,
“नाटक अच्छा था,
जानकारी भी मिली।
कोई नाच-गाना भी दिखला दो।”
हमारी सकुचाई टोली कहती है,
“वो तो नहीं है हमारे पास।”
फिर आवाज़ आती है,
“यहाँ पानी की बहुत दिक्कत है।”
वो जानते हैं हम सरकार-संस्था नहीं,
लेकिन जैसे हम जाते हैं गाँव
ये सोचकर कि शायद वहाँ रह जाए
हमारी कोई बात,
वो हमें विदा करते हैं
आशा करते हुए
कि शायद पहुँच जाए शहर तक
उनकी कोई बात।
– अंकिता आनंद
जन्म : 2 अगस्त 1985, भागलपुर, बिहार
भाषा : हिंदी, अँग्रेजी
विधाएँ : कविता, लेख, पत्रकारिता
प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं और ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
औरेंज फ्लावर अवार्ड (डिजिटल हिंदी व अँग्रेजी लेखन), ग्रामीण पत्रकारिता पुरस्कार (द स्टेट्समैन), लौरेंज़ो नताली मीडिया पुरस्कार (यूरोपियन कमीशन), सिंगापुर कविता पुरस्कार
Very nice