हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए
आज कल हैं वो याद आए हुए
मैं ने रातें बहुत गुज़ारी हैं
सिर्फ़ दिल का दिया जलाए हुए
एक उसी शख़्स का नहीं मज़कूर
हम ज़माने के हैं सताए हुए
सोने आते हैं लोग बस्ती में
सारे दिन के थके थकाए हुए
मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट
नज़र आते हैं मुस्कुराए हुए
गो फ़लक पे नहीं पलक पे सही
दो सितारे हैं जगमगाए हुए
ऐ ‘शुऊर’ और कोई बात करो
हैं ये क़िस्से सुने सुनाए हुए