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सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे
मुझे ज़मींन की गहराइयों ने दाब लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे
राहत इन्दौरी
Apratim