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मैं तो बहता इक दरिया हुँ।
गर ठहरूँ, ठहरूँ तो कैसे।
साथ मेरे ये आसमान है।
रुकना है पर रुकूँ तो कैसे।
मैं ही साथी मैं ही मंज़िल
मैं ही हल हुँ,मैं ही मुश्किल
मैं अमृत हुँ, और हलाहल
मैं ही विपदा मैं ही संबल।
मैं सृष्टि का करता धरता।
मैं ही पलपल जीता मरता।
मैंने सतयुग द्वापर देखे।
श्री राम मुरलीधर देखे।
मैं ही सत्य हूँ मैं ही धोखा।
मैं कलयुग का लेखा जोखा।
मैं जीवन का महासमर हुँ।
युगों युगों से अजर अमर हुँ।
मैं ही मात हुँ, मैं विजय हुँ।
मैं समय हुँ, मैं समय हुँ।
–अमूल्य मिश्रा
Nice one