मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ – भगवतीचरण वर्मा

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मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा

देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर पल भर सुख भी देखा
फिर पल भर दुख भी देखा ।

किस का आलोक गगन से
रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
काले बादल घिर आते?

उस चित्रकार को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
बन-बनकर मिट-मिट जाते ।

फिर उठना, फिर गिर पड़ना
आशा है, वहीं निराशा
क्या आदि-अन्त संसृति का
अभिलाषा ही अभिलाषा?

अज्ञात देश से आना,
अज्ञात देश को जाना,
अज्ञात अरे क्या इतनी
है हम सब की परिभाषा ?

पल-भर परिचित वन-उपवन,
परिचित है जग का प्रति कन,
फिर पल में वहीं अपरिचित
हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन ।

है क्या रहस्य बनने में ?
है कौन सत्य मिटने में ?
मेरे प्रकाश दिखला दो
मेरा भूला अपनापन ।

  • भगवतीचरण वर्मा

जन्म : 30 अगस्त 1903, शफीपुर, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

भाषा : हिंदी

विधाएँ : उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध

उपन्यास : अपने खिलौने, पतन, तीन वर्ष, चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, टेढ़े मेढ़े रास्ते, सीधी सच्ची बातें, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, वह फिर नहीं आई, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका 


कहानी संग्रह : मोर्चाबंदी, राख और चिनगारी, इंस्टालमेंट


संस्मरण : अतीत की गर्त से  


नाटक : रुपया तुम्हें खा गया 


आलोचना : साहित्य के सिद्धांत तथा रूप

सम्मान :
साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण

निधन :
5 अक्टूबर 1981

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