मिल गया है इक नया संसार तुमसे।
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
साँझ की चढ़ती जवानी भी न भाती।
भोर की पहली किरन भी हास पाती।
ओस के संसर्ग भीगे पात दिल के।
फूल ज्यों सोए पड़े हैं आज खिल के।
है इन्हीं सा हाल, जोड़े तार तुमसे ?
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
आज ये नदिया चली थी शाम तट से।
सब घटाँ पूछतीं थीं राज पट से।
अब हवाओं में नहीं गिरती-सँभलती?
मौन थी मैं, धड़कनें कहतीं-उछलती।
मैंने सीखा है चलन का सार तुमसे।
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
तुम न थे तो ये कहाँ कुछ हो रहा था?
आसमाँ भी दूर जाकर सो रहा था।
स्नेह-तिनके-सा तुम्हारा खींच लाया।
ऊर्मियों पर आज कैसा गीत गाया।
दिल कहे कर पार सीखूँ प्यार तुमसे ?
लग रहा करने लगी हूँ प्यार तुमसे।
– शीला पांडे
जन्म : 30 जनवरी 1968, बस्ती, उत्तर प्रदेश
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता, कहानी, निबंध, समीक्षा, साक्षात्कार, रिपोर्ताज, बाल साहित्य
मुख्य कृतियाँ : समय में घेरे (निबंध संग्रह), मुक्त पलों में (मुक्त-छंद-काव्य-संग्रह), नील विहग (मोरिस मैटर लिंक के नाटक ‘‘ब्ल्यू बर्ड’’ का हिंदी अनुवाद), उत्तर भारत की लोककथाएँ (बाल कहानियाँ), रे मन! गीत लिखूँ मैं कैसे? (गीत-संग्रह)
सम्मान : लोक साहित्य – बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस – सर्जना पुरस्कार (उ.प्र. हिंदी संस्थान), ‘हेल्प यू ट्रस्ट’ सम्मान (भाषा संस्थान उत्तर प्रदेश), श्रीमती सुशीला देवी स्मृति सम्मान (अनंत अनुनाद संस्था), मैथलीशरण गुप्त विशिष्ट प्रशस्ति-पत्र (अ.भा. अगीत परिषद लखनऊ)
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