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नशीला चाँद आता है।
नयापन रूप पाता है।
सवेरे को छिपाती रात अंचल में,
झलकती ज्योति निशि के नैन के जल में
मगर फिर भी उजेला छिप ना पाता है –
बिखर कर फैल जाता है।
तुम्हारे साथ हम भी लूट लें ये रूप के गजरे
किरण के फूल से गूँथे यहाँ पर आज जो बिखरे।
इन्हीं में आज धरती का सरल मन खिलखिलाता है।
छिपे क्यों हो इधर आओ।
भला क्या बात छिपने की?
नहीं फिर मिल सकेगी यह
नशीली रात मिलने की।
सुनो कोई हमारी बात को गर सुनाता है।
मिला कर गीत की कड़ियाँ हमारे मन मिलाता है।
नशीला चाँद आता है।
– हरिनारायण व्यास
मूल नाम : हरिनारायण घनश्याम व्यास
जन्म : 14 अक्टूबर 1923, सुंदरसी (मध्य प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता
कविता संग्रह : दूसरा सप्तक (छह अन्य कवियों के साथ), मृग और तृष्णा, त्रिकोण पर सूर्योदय, बरगद के चिकने पत्ते, आउटर पर रुकी ट्रेन, निद्रा के अनंत में जागते हुए
सम्मान : भवभूति सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार), शिखर सम्मान (महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी), अनंत गोपाल शेवडे सम्मान
निधन : 14 जनवरी 2013, पुणे
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