हम तेरी चाह में – गोपालदास “नीरज”

हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुँचे ।
होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुँचे ।

इतना मालूम है, ख़ामोश है सारी महफ़िल, 
पर न मालूम, ये ख़ामोशी कहाँ तक पहुँचे ।

वो न ज्ञानी ,न वो ध्यानी, न बिरहमन, न वो शेख, 
वो कोई और थे जो तेरे मकाँ तक पहुँचे । 

एक इस आस पे अब तक है मेरी बन्द जुबाँ, 
कल को शायद मेरी आवाज़ वहाँ तक पहुँचे । 

चाँद को छूके चले आए हैं विज्ञान के पंख, 
देखना ये है कि इन्सान कहाँ तक पहुँचे ।

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