प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह – गोपालदास “नीरज”

जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह ,
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह |

ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा
जाने शरमाए वो क्यों गांव की दुल्हन की तरह |

कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो
जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह |

दाग मुझमें है कि तुझमें यह पता तब होगा ,
मौत जब आएगी कपड़े लिए धोबन की तरह |

हर किसी शख्स की किस्मत का यही है किस्सा ,
आए राजा की तरह ,जाए वो निर्धन की तरह |

जिसमें इन्सान के दिल की न हो धड़कन की नीरज ‘
शायरी तो है वह अखबार की कतरन की तरह |

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