नेपथ्य – अंकिता आनंद

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गाँव में होता है नाटक
फिर चर्चा, सवाल-जवाब।

लोग कहते सुनाई देते हैं,
“नाटक अच्छा था,
जानकारी भी मिली।
कोई नाच-गाना भी दिखला दो।”

हमारी सकुचाई टोली कहती है,
“वो तो नहीं है हमारे पास।”
फिर आवाज़ आती है,
“यहाँ पानी की बहुत दिक्कत है।”

वो जानते हैं हम सरकार-संस्था नहीं,
लेकिन जैसे हम जाते हैं गाँव
ये सोचकर कि शायद वहाँ रह जाए
हमारी कोई बात,

वो हमें विदा करते हैं
आशा करते हुए
कि शायद पहुँच जाए शहर तक
उनकी कोई बात।

अंकिता आनंद

जन्म : 2 अगस्त 1985, भागलपुर, बिहार

भाषा : हिंदी, अँग्रेजी
विधाएँ : कविता, लेख, पत्रकारिता

प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं और ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित

औरेंज फ्लावर अवार्ड (डिजिटल हिंदी व अँग्रेजी लेखन), ग्रामीण पत्रकारिता पुरस्कार (द स्टेट्समैन), लौरेंज़ो नताली मीडिया पुरस्कार (यूरोपियन कमीशन), सिंगापुर कविता पुरस्कार

इस पुस्तक को ग़ज़ल का ककहरा सीखने वालों के लिए मानक ग्रन्थ कहा जा सकता है। कई संस्करण तथा हज़ारों की संख्या में बिक चुकी यह किताब विशेषकर देवनागरी में ग़ज़ल कहने वालों के लिए किसी उस्ताद से कम नहीं है। नए सीखने वालों की तलाश इस पुस्तक पर आकर ख़त्म होती है क्योंकि अब वे स्वयं अपनी ग़ज़लों की इस्लाह कर सकते हैं। ग़ज़ल के बारे में देवनागरी में बिखरा-बिखरा बहुत कुछ ज्ञान मिल जाता है लेकिन बहुत सी अंदरूनी बातें नहीं मिलतीं जो इस पुस्तक में आ गयी हैं। यह ‘ग़ज़ल की बाबत’ का पेपरबैक संस्करण है जिसमें सभी मूल पाठों को रखा गया है।

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