कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।
जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहाँ प्रिये
संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये ।
पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।
आओ कुछ ले लें औ’ दे लें ।
हम हैं अजान पथ के राही,
चलना जीवन का सार प्रिये
पर दुःसह है, अति दुःसह है
एकाकीपन का भार प्रिये ।
पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,
आओ कुछ ले लें औ’ दे लें ।
हम-तुम अपने में लय कर लें ।
उल्लास और सुख की निधियाँ,
बस इतना इनका मोल प्रिये
करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें
कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये ।
सौरभ से अपना उर भर लें,
हम तुम अपने में लय कर लें ।
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।
जग के उपवन की यह मधु-श्री,
सुषमा का सरस वसन्त प्रिये
दो साँसों में बस जाय और
ये साँसें बनें अनन्त प्रिये ।
मुरझाना है आओ खिल लें,
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।
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भगवतीचरण वर्मा
जन्म : 30 अगस्त 1903, शफीपुर, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध
मुख्य कृतियाँ
उपन्यास : अपने खिलौने, पतन, तीन वर्ष, चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, टेढ़े मेढ़े रास्ते, सीधी सच्ची बातें, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, वह फिर नहीं आई, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका
कहानी संग्रह : मोर्चाबंदी, राख और चिनगारी, इंस्टालमेंट
संस्मरण : अतीत की गर्त से
नाटक : रुपया तुम्हें खा गया
आलोचना : साहित्य के सिद्धांत तथा रूप
सम्मान : साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण
निधन : 5 अक्टूबर 1981