अपने सच में

download the app from this link

अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही
कितनी कोशिश की, मगर, हर बार थोड़ी कम रही

कुछ अना भी बिकने को तैयार थोड़ी कम रही
और कुछ दीनार की झनकार थोड़ी कम रही

ज़िंदगी! तेरे क़दम भी हर बुलंदी चूमती
तू ही झुकने के लिए तैयार थोड़ी कम रही

सुनते आए हैं कि पानी से भी कट जाते हैं संग
शायद अपने आँसुओं की धार थोड़ी कम रही

या तो इस दुनिया के मनवाने में कोई बात थी
या हमारी नीयत-ए-इनकार थोड़ी कम रही

रंग और ख़ुशबू का जादू अबके पहले सा न था
मौसम-ए-गुल में बहार इस बार थोड़ी रही

आज दिल को अक़्ल ने जल्दी ही राज़ी कर लिया
रोज़ से कुछ आज की तकरार थोड़ी कम रही

लोग सुन कर दास्ताँ चुप रह गए, रोए नहीं
शायद अपनी शिद्दत-ए-इज़हार थोड़ी कम रही

राजेश रेड्डी

जन्म : 22 जुलाई 1952, जयपुर, राजस्थान

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, नाटक

कविता संग्रह : उड़ान, आसमां से आगे

1 thought on “अपने सच में”

Leave a Comment

error: Content is protected !!