दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर
इतनी तो है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं
मेला राम वफ़ा
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
मीर तक़ी मीर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
परवीन शाकिर
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
कैफ़ भोपाली
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बशीर बद्र