जीवन नहीं मरा करता है – नीरज

छुप- छुप अश्रु बहाने वालो !
मोती व्यर्थ लुटाने वालो !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है ।

सपना क्या है ? नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी,
गीली उमर बनाने वालो!
डूबे बिना नहाने वालो !
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है ।
मालाबिखर गई तो क्या है
ख़ुद ही हल हो गई समस्या ,
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या ,
रूठे दिवस मनाने वालो!
फटी कमीज़ सिलाने वालो!
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है ।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी ।
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती,
वस्त्र बदलकर आने वालो !
चाल बदलकर जाने वालो !
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है ।
लाखों बार गगरियाँ फूटी

शिकन न पर आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं
चहल – पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है ।
लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की ,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बन्द न हुई धूल की ,
नफ़रत गले लगाने वालो !
सब पर धूल उड़ाने वालो !
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है ।

नीरज

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