ईश्वर नहीं नींद चाहिए

औरतों को ईश्वर नही
आशिक नहीं
रूखे फीके लोग चाहिए आस पास
जो लेटते ही बत्ती बुझा दें अनायास
चादर ओढ़ लें सर तक
नाक बजाने लगें तुरंत

नजदीक मत जाना
बसों ट्रामों और कुर्सियों में बैठी औरतों के
उन्हें तुम्हारी नहीं
नींद की जरूरत है

उनकी नींद टूट गई है सृष्टि के आरम्भ से
कंदराओं और अट्टालिकाओं में जाग रहीं हैं वे
कि उनकी आँख लगते ही
पुरुष शिकार न हो जाएँ
बनैले पशुओं/ इनसानी घातों के
जूझती रही यौवन में नींद
बुढ़ापे में अनिद्रा से

नींद ही वह कीमत है
जो उन्होंने प्रेम परिणय संतति
कुछ भी पाने के एवज में चुकाई
सोने दो उन्हें पीठ फेर आज की रात
आज साथ भर दुलार से पहले
आँख भर नींद चाहिए उन्हें।

अनुराधा सिंह

जन्म : ओबरा, उत्तरप्रदेश

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, अनुवाद, आलेख

कविता संग्रह : ईश्वर नहीं नींद चाहिए

प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग्स में कविताओं, वैचारिक आलेखों, समीक्षाओं और अनुवादों का निरंतर प्रकाशन। प्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक बेनेडिक्ट एंडरसन की पुस्तक ‘इमैजिंड कम्युनिटीज’ के पहले हिंदी अनुवाद के अलावा माइकल टौसिग्स, डेमियन वाल्टर्स, कैथलीन रूनी आदि के आलेख और माया एन्जिलो, जून जॉर्डन, ऑड्रे लॉर्ड् और लैंग्स्टन ह्यूज जैसे अश्वेत कवियों की रचनाओं का विस्तृत अनुवाद। हाल ही में तिब्बत के निर्वासित कवियों की कविताओं के अनुवाद भी चर्चा में।

Ghazal Ki Babat

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