चित्रांश खरे
हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है इसी लिए तो अभी तक ये जान बाक़ी है वो नफ़रतों की इमारत भी गिर गई देखो मोहब्बतों का ये कच्चा मकान बाक़ी है मिरा उसूल है ग़ज़लों में सच बयाँ करना मैं मर गया तो मिरा ख़ानदान बाक़ी है मैं … Read more