तो मेरा तू ही ख़्वाब है – कुँवर बेचैन

कुँवर बेचैन आँखें हूँ अगर मैं, तो मेरा तू ही ख़्वाब हैमैं प्रश्न अगर हूँ, तो मेरा तू ज़वाब है। मैं क्यूँ न पढूं रोज़ नई चाह से तुझेतू घर में मेरे एक भजन की किताब है। खुश्बू भी, तेरा रंग भी मुझमें भरा हुआतू दिल की नई शाख़ पे पहला गुलाब है। देखा जो … Read more

ज़िंदगी यूँ भी जली – कुँअर बेचैन

ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तकचाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सरख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकलीकृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की … Read more

गगन में जब अपना सितारा – कुँअर बेचैन

गगन में जब अपना सितारा न देखा,तो जीने का कोई सहारा न देखा  नज़र है, मगर वो नज़र क्या कि जिसने,खुद अपनी नज़र का नज़ारा न देखा  भले वो डुबाए, उबारे कि हमने,भंवर देख ली तो किनारा न देखा  वो बस नाम का आईना है की जिसने,कभी हुस्न को खुद संवारा न देखा  तुम्हे जब … Read more

तुम्हारे हाथ में टँककर – कुँअर बेचैन

तुम्हारे हाथ में टँककर बने हीरे, बने मोती बटन, मेरी कमीज़ों के। नयन को जागरण देतीं नहायी देह की छुअनें कभी भीगी हुईं अलकें कभी ये चुंबनों के फूल केसर-गंध-सी पलकें सवेरे ही सपन झूले बने ये सावनी लोचन कई त्यौहार तीजों के। बनी झंकार वीणा की तुम्हारी चूड़ियों के हाथ में यह चाय की … Read more

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