उपेन्द्रनाथ अश्क

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? शिशिर ऋतु की धूप-सा सखि, खिल न पाया मिट गया सुख, और फिर काली घटा-सा, छा गया मन-प्राण पर दुख, फिर न आशा भूलकर भी, उस अमा में मुसकराई! आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? हाँ कभी जीवन-गगन में, थे खिले दो-चार तारे, टिमटिमाकर, बादलों … Read more

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