बुलन्दी पर बहुत नीचाइयाँ हैँ। – सूर्यभानु गुप्त

पहाड़ों के कदों की खाइयाँ हैँ, बुलन्दी पर बहुत नीचाइयाँ हैँ। है ऐसी तेज़ रफ़्तारी का आलम, की लोग अपनी ही खुद परछाइयाँ हैँ। गले मिलिए तो कट जाती हैँ जेबें, बड़ी उथली यहाँ गहराइयाँ हैँ। हवा बिजली के पंखे बांटते हैँ, मुलाजिम झूठ की सच्चाइयाँ हैँ। बिके पानी समन्दर के किनारे, हकीकत पर्वतों की … Read more

error: Content is protected !!