उल्लू बनाती हो? – शैल चतुर्वेदी

एक दिन मामला यों बिगड़ाकि हमारी ही घरवाली सेहो गया हमारा झगड़ास्वभाव से मैं नर्म हूँइसका अर्थ ये नहींके बेशर्म हूँपत्ते की तरह काँप जाता हूँबोलते-बोलते हाँफ जाता हूँइसलिये कम बोलता हूँमजबूर हो जाऊँ तभी बोलता हूँहमने कहा-“पत्नी होतो पत्नी की तरह रहोकोई एहसान नहीं करतींजो बनाकर खिलाती होक्या ऐसे ही घर चलाती होशादी को … Read more

व्यंग्य – शैल चतुर्वेदी

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ाऔर कहा, “एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?”तो बोला, “पहले खाना खिलाओ।”खाना खिलाया तो बोला, “पान खिलाओ।”पान खिलाया तो बोला, “खाना बहुत बढ़िया थाउसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैंहमें व्यंग्य मत सुनाओजो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहाऔर हमें बेरोज़गारी … Read more

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