मेरे जज़्बात

मेरे जज़्बात में जब भी कभी थोड़ा उबाल आया कभी बच्चों की चिंता तो कभी घर का खयाल आया पुरानी बंदिशें थीं या पुरानी रंजिशें थीं वो मेरी पूँजी का हिस्सा थीं, करीने से सँभाल आया इसे हालात से समझौता करना, चाहो तो कह लो जगी मरने की ख्वाहिश तो उसे भी कल पे टाल … Read more

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