फागुनों की धूप ने

गुनगुनी
बातें लिखीं फिर
फागुनों की धूप ने.

देह
तारों-सी बजी
कुछ राग बिखरे

तितलियों के
फूल के
हैं रंग निखरे

गंध-सौगातें
लिखीं फिर
फागुनों की धूप ने

मन उड़ा
बन-पाखियों-सा
नये अम्बर

नेह की
शहनाइयों के
चले मंतर

स्वप्न-बारातें
लिखीं फिर
फागुनों की धूप ने

शब्द पाखी
गीत के
आकाश पहुंचे

पतझड़ों के
रास्ते
मधुमास पहुंचे,

जागती रातें
लिखीं फिर
फागुनों की धूप ने.

हरीश निगम

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