download kavya dhara hindi application for more poetry
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.sufalamtech.hindipoem
तर्क गूँगे हो गए सब
मौन सा स्वर हूँ
मैं तुम्हारे प्रश्न के
आगे निरुत्तर हूँ
प्रश्न है नाजुक तुम्हारा
खुरदुरी मेरी सतह
और उस पर द्वंद्व की
ये नागफनियाँ बेवजह
शब्द से जो है परे
वह दृष्टि कातर हूँ
फिर रही हूँ मैं हवाओं में
विचारों की तरह
न तो धरती है न अंबर
कौन सी मेरी जगह ?
शून्य में हूँ या कि मैं
ऊँचे शिखर पर हूँ
कल्पनाओं के उभरते
बिंब धुँधले हो चुके
पंख की तुम बात करते
पाँव की तुम बात करते
पाँव मेरे खो चुके
अब अहिल्या की तरह
बस एक पत्थर हूँ
चल रही इस कश्मकश का
दिख न पाता छोर है
पाँव के नीचे हमारे
काँपती इक डोर है
मिट गई जिसकी लकीरें
वो मुकद्दर हूँ
जिंदगी की मैं अधूरी
रूप रेखा सी हुई
आज खुद से ही पराजित
चित्रलेखा सी हुई
हो न पाया जा सफल
मैं वो स्वयंवर हूँ
विष छुपा है या कि अमृत
अब समय मंथन करें
गर्भ में इसके उतरकर
अनवरत चिंतन करें
मैं सदी की हलचलों का
वो समंदर हूँ
मैं तुम्हारे प्रश्न के आगे
निरुत्तर हूँ
– मधु शुक्ला
Bahut khub