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बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं ।
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।
आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
अब तड़पती-सी गजल कोई सुनाए,
हमसफर ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।
-दुष्यंत कुमार
जन्म : 1 सितंबर 1933, राजपुर-नवादा, बिजनौर (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : नाटक ,कहानी,उपन्यास ,गजल, आलोचना, अनुवाद
काव्य संग्रह : सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुए वन का वसन्त।
काव्य नाटक : एक कण्ठ विषपायी
उपन्यास : छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी
कहानी संग्रह : मन के कोण
नाटक : और मसीहा मर गया
गजल संग्रह : साये में धूप
निधन : 30 दिसंबर 1975