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ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!
एक बार अचानक – तू आया
वक़्त बिल्कुल हैरान
मेरे कमरे में खड़ा रह गया।
साँझ का सूरज अस्त होने को था,
पर न हो सका
और डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया…
फिर आदि के नियम ने एक दुहाई दी,
और वक़्त ने उन खड़े क्षणों को देखा
और खिड़की के रास्ते बाहर को भागा…
वह बीते और ठहरे क्षणों की घटना –
अब तुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है
और मुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है
और शायद वक़्त को भी
फिर वह ग़लती गवारा नहीं
अब सूरज रोज वक़्त पर डूब जाता है
और अँधेरा रोज़ मेरी छाती में उतर आता है…
पर बीते और ठहरे क्षणों का एक सच है –
अब तू और मैं मानना चाहें या नहीं
यह और बात है।
पर उस दिन वक़्त
जब खिड़की के रास्ते बाहर को भागा
और उस दिन जो खून
उसके घुटनों से रिसा
वह खून मेरी खिड़की के नीचे
अभी तक जमा हुआ है…
– अमृता प्रीतम
जन्म : 31 अगस्त, 1919 गुजरांवाला (पंजाब)
विधाएँ : कविता, उपन्यास, कहानी
मुख्य कृतियाँ :
उपन्यास : डॉक्टर देव, पिंजर, आह्लणा, आशू, इक सिनोही, बुलावा, बंद दरवाज़ा, रंग दा पत्ता, इक सी अनीता, चक्क नम्बर छत्ती, धरती सागर ते सीपियाँ, दिल्ली दियाँ गलियाँ, एकते एरियल, जलावतन, यात्री, जेबकतरे, अग दा बूटा, पक्की हवेली, अग दी लकीर, कच्ची सड़क, कोई नहीं जानदाँ, उनहाँ दी कहानी, इह सच है, दूसरी मंज़िल, तेहरवाँ सूरज, उनींजा दिन, कोरे कागज़, हरदत्त दा ज़िंदगीनामा
आत्मकथा : रसीदी टिकट
कहानी संग्रह : हीरे दी कनी, लातियाँ दी छोकरी, पंज वरा लंबी सड़क, इक शहर दी मौत, तीसरी औरत
कविता संग्रह : लोक पीड़, मैं जमा तू, लामियाँ वतन, कस्तूरी, सुनहुड़े, कागज ते कैनवस
गद्य कृतियाँ : किरमिची लकीरें, काला गुलाब, अग दियाँ लकीराँ, इकी पत्तियाँ दा गुलाब, सफ़रनामा, औरत : इक दृष्टिकोण, इक उदास किताब, अपने-अपने चार वरे, केड़ी ज़िंदगी केड़ा साहित्य, कच्चे अखर, इक हथ मेहन्दी इक हथ छल्ला, मुहब्बतनामा, मेरे काल मुकट समकाली, शौक़ सुरेही, कड़ी धुप्प दा सफ़र, अज्ज दे काफ़िर
निधन : 31 अक्तूबर 2005, नई दिल्ली
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