धूप का टुकड़ा
मुझे वह समय याद है-
जब धूप का एक टुकड़ा
सूरज की उँगली थाम कर
अँधेरे का मेला देखता
उस भीड़ में कहीं खो गया…
सोचती हूँ-सहम का
और सूनेपन का एक नाता है
मैं इसकी कुछ नहीं लगती
पर इस खोये बच्चे ने
मेरा हाथ थाम लिया
तुम कहीं नहीं मिलते
हाथ को छू रहा है
एक नन्हा-सा गर्म साँस
न हाथ से बहलता है,
न हाछ को छोड़ता है
अँधेरे का कोई पार नहीं
मेले के शोर में भी
एक खामोशी का आलम है
और तुम्हारी याद इस तरह
जैसे धूप का एक टुकड़ा….
याद
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बन्द की
और अँधेरे की सीढ़ियाँ उतर गया…
आसमान की भवों पर
जानें क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन कोल कर
उसने चाँद का कुर्ता उतार दिया…
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूँ,
तुम्हारी याद इस तरह आयी-
जैसे गीली लकड़ी में से
गाढ़ा और कडुवा धुआँ उठता है…
साथ हज़ारों ख़्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख़ आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियाँ अभी बुझायीं हैं…
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक़्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये…
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और ज़िन्दगी की हँडिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया…
रोज़ी
नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का सायरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है
सपने जैसे कई भट्ठियाँ हैं
हर भट्ठी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है
तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे हथेली पर कोई
एक वक़्त की रोज़ी रखता है…
जो खाली हँडिया भरती है
राँध-पका कर अन्न परस कर
वह हाँडी उलटा रखता है
बची आँच पर हाथ सेंकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और ख़ुदा का शुक्र मनाता है
रात-मिल का सायरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुँआ इस उम्मीद पर निकलता है
जो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है
न कोई टुकड़ा कल के लिए है…
दावत
रात-लड़की ने दावत दी
सितारों के चावल फटक कर
यह देग़ किसने चढ़ा दी ?
चाँद की सुराही कौन लाया
चाँदनी की शराब पी कर
आकाश की आँखें गहरा गयीं
धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज टहनियों के घर
फूल मेहमान हुए हैं
आगे क्या लिखा है
अब इन तकदीरों से
कौन पूछने जाएगा
उम्र के काग़ज़ पर-
तेरे इश्क़ ने अंगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकाएगा !
किस्मत ने इक नग़मा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वहीं नग़मा गाएगा
कल्प-वृक्ष की छाँव में बैठकर
कामधेनु के छलके दूध से
किसने आज तक दोहनी भरी ?
हवा की आहें कौन सुने !
चलूँ, आज मुझे
तक़दीर बुलाने आयी है…
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