अधूरी चीजें तमाम – प्रयाग शुक्ल

बारिश

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बारिश के लिए रात नहीं थी
वह तो बस बरस रही थी
हमारे लिए रात और
बारिश थी।

अधूरी चीजें तमाम

अधूरी चीजें तमाम
दिखती हैं
किसी भी मोड़ पर
करवटों में मेरी
अधूरी नींद में
हाथ जब लिखने लगता है कुछ,
जब उतर आती है रात

अब मैं नहीं याद करता तुम्हें

बरस बीते
मिले थे हम दूर देश में
एक और देश में दूसरे,
आज
मैं नहीं याद करता तुम्हें
जाने कहाँ हो तुम
बरस बीते

पीता हूँ सिगरेट ढूँढ़ता हड़बड़ाकर
माचिस
जाकर खड़ा हो जाता
खिड़की के पास
सूर्यास्त

अब मैं नहीं याद करता तुम्हें

परिचय

जन्म : 28 मई, 1940, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल

भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता, कहानी, उपन्यास संस्मरण, निबंध, यात्रा वृत्तांत, कला-समीक्षा, बाल साहित्य, अनुवाद

मुख्य कृतियाँ

कविता संग्रह : कविता संभव, यह एक दिन है, अधूरी चीज़ें तमाम, बीते कितने बरस, यह जो हरा है, यहाँ कहाँ थी छाया, इस पृष्ठ पर, सुनयना फिर यह न कहना। ‘यानी कई वर्ष’ में छह संग्रहों की कविताएँ संकलित हैं। पचास कविताएँ, (पेपर बैक) प्रतिनिधि कविताओं का संकलन। ‘ह्वाइल अ प्लेन ज़ूम्स पास्ट इन द स्काई’ (अँग्रेज़ी में)

कहानी संग्रह : अकेली आकृतियाँ, इसके बाद, छायाएँ तथा अन्य कहानियाँ, काई। एल्बम (पेपर बैक) प्रतिनिधि कहानियों का संकलन।

उपन्यास : गठरी, आज और कल, लौटकर आने वाले दिन

यात्रा वृत्तांत : सम पर सूर्यास्त, सुरंगाँव बंजारी, त्रांदाइम में ट्राम, हेलेन गैनली की नोट बुक, ग्लोब और गुब्बारे

आलोचना : अर्ध विराम, आज की कला, सत्यजित राय : एक फिल्मकार की ऊँचाई, राम कुमार : लाइंस एंड कलर्स (अँग्रेज़ी में)

निबंध : घर और बाहर, हाट और समाज

संस्मरण : साझा समय, स्मृतियाँ बहुतेरी

अनुवाद : रवींद्रनाथ ठाकुर की गीतांजलि का मूल बांग्ला से अनुवाद। ओक्ताविओ पाज की कविताएँ। जीवनानंद दास, शंख घोष की प्रतिनिधि कविताएँ। बंकिमचंद्र : प्रतिनिधि निबंध, सुनो दीपशालिनी (रवींद्रनाथ के गीत)

बाल साहित्य : धम्मक धम्मक, हक्का बक्का, चमचम बिजली झमझम पानी, कहाँ नाव के पाँव, ऊँट चला भाई ऊँट चला, मिश्का झूल रही है झूला, धूप खिली है हवा चली है, उड़ना आसमान में उड़ना

संपादन : कल्पना : काशी अंक, कविता-नदी, कला और कविता, कला समय समाज, बदरीविशाल, रंग तेंदुलकर, अंक यात्रा। कल्पना, दिनमान, नवभारत टाइम्स (संपादक मंडल के सदस्य), समकालीन कला, रंग प्रसंग, हिंदी फ़ेमिना, पराग। इन दिनों संगीत नाटक अकादेमी की पत्रिका ‘संगना’ के संपादक।

नवसाक्षरों के लिए : बसंत सेना (‘मृच्छकटिकम’ पर आधारित कथा)

 

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