बंदा तु विवश ना बन
छोडना तु मंजिल का पथ
मन की सुन – मन की कर
हार कभी नहीं है हौशले की
तुही तेरा गुरु – तुही तेरा शिष्य
प्रतिभा पर पाबंदी कयों?
तारीफ की उम्मीदें कयो?
राह चुनी हे चलता जा
कंकर कि परवाह कयो?
मन की उडान छुता जा
तालीयाँ की उम्मीद कयो?
इरादा अटल है नेकी का पथ है
फैली है पंख सपनो की,
फिर थकान कहा
निंद मैं सपने सजाना कयो?
तोडदो मन कि दूब़लता को
विष्वास कि मशाल जगाऔ
अपना बोज खुद उठाओ
तुम उठो – मत मुडो
बिंदु से – सिंघु बनो
जयश्री पंडया
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